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शुक्रवार, 15 मार्च 2024

सन 2075 ई0 !! कढ़ेर चरित!?

सन 2075 ई0!! ऊपर उन चट्टानों के बीच उस दरार में उस बुजुर्ग ने अपना आवास बना रखा था। "आप पचास साल से यहीं हैं?" "मुम्बई का यह बिच?!" "कढ़ेर नाम का वह व्यक्तित्व उस पर चिंन्तन करते हुए हम यहाँ पर?" "यह अंदर क्या चल रहा है?लगता है कोई आत्मा अंदर आकर बैठ गयी है और हमें वर्तमान से हटकर भविष्य का आभास हो रहा है।" रात भर भी हम इस आभास में रहे कि..... लेकिन अभी तो यहां कुछ भी नहीं।न भीड़ न वह बुजुर्ग यहां?" "ऐसा लगता जैसे कि हम भांग खाए हुए हों?और सन 2075ई0 के वे दृश्य देखे जा रहे हैं।लेकिन यह तभी से है जब से हम कढ़ेर किरदार के बारे में सोंचना शुरू किया है।" आशीष विसु ने जब अपनी आंखें खोली तो उसने अपने को एक कमरे में विस्तर पर पाया।                @@@    @@@   @@@ समुद्र की लहरें! दुनिया भर में समुद्र के किनारे समुद्र में विलीन होते जा रहे थे। समुद्र का तल पचास साल पहले की अपेक्षा का ऊपर उठ चुका था। "आशीष....आशीष....आशीष विसु ....विसु....आशीष विसु...!! कहीं कोई व्यक्ति नजर नहीं आ रहा था। एक चट्टान पर खड़ा एक बुजुर्ग इधर उधर देखने लगता था। "कोई नजर नहीं आता।लेकिन ये मन भी कैसा हो जाता है?यह आवाजें कैसी?" वह वापस नगर की ओर चल दिया। नगर के बाहर ही एक ओर पड़ी झोपड़ियों की ओर वह आ गया। देखा कि वहां तो जहां - तहां छतरियों के नीचे पड़ी बांस की कुर्सियों पर युवा जोड़े बैठे हुए थे। वह बुजुर्ग रास्ता बदल कर अन्यत्र आ गया। एक कुर्सी पर बैठते हुए गहरी गहरी श्वासें लीं। कुछ पर्यटक उधर ही आ गए। "अरे,सर आप?"-पर्यटको में से एक युवक बोला। "यह कौन?" - उस बुजुर्ग की ओर देखते हुए । "अरे,आशीषविसु!भूल गए।उस दिन टीबी पर इसको देख नहीं रहे थे एक सीरियल में?" "अच्छा?!तो आओ मिलते हैं ।" यह बुजुर्ग जो आकर कुर्सी पर बैठा था..." वो आवाज कैसी गूंज रही थी मेरे ही अंतर्मन में?!मेरा ही नाम?" इसके बाद अब बुजुर्ग अवस्था में पहुंचा यह आशीष विसु आये पर्यटकों से वार्ता करने लगा था। उधर समुद्र किनारे प्रयत्न -- बुजुर्ग भंगन्ना की नजर में अब प्रयत्न ही कढ़ेर था।